परिचय
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के संवेदनशील दौर में, 1945 में Lord Wavell द्वारा प्रस्तुत Wavell Yojna (Wavell Plan / Wavell Proposal) एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। यह ब्रिटिश भारत में सत्ता हस्तांतरण की दिशा में एक प्रयास था, जिसमें भारतियों को अधिक प्रतिनिधित्व देने की योजना थी। इस लेख में हम जानेंगे कि वेवेल योजना क्या थी, इसके प्रस्ताव क्या थे, कांग्रेस और मुस्लिम लीग की प्रतिक्रियाएँ क्या रहीं, और यह क्यों सफल न हो सकी।
पृष्ठभूमि
द्वितीय विश्व युद्ध और भारत की स्थिति
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन पर युद्ध और औपनिवेशिक दबाव बढ़ने लगे थे। भारत में राजनीतिक आंदोलन और राष्ट्रीय उभार ने ब्रिटिश सत्ता के लिए भारी चुनौतियाँ उत्पन्न कर दी थीं।
Lord Wavell, जो 1943 में भारत के Viceroy बने, को यह चुनौती सौंपी गई कि वह कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता कर भारत की संवैधानिक स्थिति पर एक राह बनाए।
वेवेल योजना / Wavell Plan — प्रस्ताव
वेवेल योजना के मुख्य प्रस्ताव निम्नलिखित थे:
| प्रस्ताव | विवरण | 
| नया कार्यकारी परिषद (Executive Council) | वायसराय की कार्यकारी परिषद का पुनर्गठन; उसमें वायसराय और कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर सभी सदस्य भारतीय होंगे। | 
| धार्मिक समान प्रतिनिधित्व (Parity) | “जाति-हिंदू” और मुस्लिमों को बराबर प्रतिनिधित्व देने का प्रस्ताव। | 
| विदेश एवं रक्षा विभाग | विदेशी मामलों (Foreign Affairs) का विभाग भारतीय सदस्य को सौंपा जाएगा, जबकि रक्षा (Defence) ब्रिटिश नियंत्रण में रहेगा। | 
| मतदान और नामांकन प्रक्रिया | राजनीतिक पक्षों को कार्यकारी परिषद के लिए सूची प्रस्तुत करने को कहा गया; यदि साझा सूची तैयार नहीं हो पाई, तो पृथक सूची प्रस्तुत की जाएगी। | 
| अंतरिम सरकार | इस पुनर्गठित परिषद को मौजूदा 1935 के अधिनियम की सीमाओं के भीतर अंतरिम सरकार का रूप देना प्रस्तावित था। | 
कांग्रेस और मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
- कांग्रेस ने “जाति-हिंदू” शब्द उपयोग की आलोचना की क्योंकि यह हिंदू समाज को कई जातियों में बांटने जैसा प्रतीत होता था।
- कांग्रेस यह मानती थी कि वह सभी समुदायों का प्रतिनिधि है — न कि सिर्फ हिंदू समुदाय का — इसलिए उसे मुस्लिम उम्मीदवार चुनने का अधिकार होना चाहिए।
- कांग्रेस को यह प्रस्ताव्य नहीं लगा क्योंकि यह पूर्ण स्वाधीनता का वादा नहीं करता था।
मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया
- मुस्लिम लीग ने ज़ोर दिया कि सभी मुस्लिम सदस्यों का नामांकन केवल मुस्लिम लीग द्वारा ही किया जाना चाहिए — ताकि मुस्लिम लीग को मुस्लिम समुदाय का असली प्रतिनिधि माना जाए।
- लीग ने एक तरह की वेटो शक्ति (veto power) की मांग की — ताकि यदि मुस्लिम पक्ष किसी प्रस्ताव के खिलाफ हो, तो उसे पारित किया न जाए जब तक दो-तिहाई अधिकता न हो।
- मुस्लिम लीग को यह डर था कि यदि अन्य अल्पसंख्यक (जैसे दलित, सिख, ईसाई आदि) कांग्रेस के साथ मिल जाएँ, तो मुस्लिम लीग को प्रभावी रूप से नगण्य कर दिया जाए।
शिमला सम्मेलन (Shimla Conference) और विफलता
- Shimla Conference 1945 को इस योजना पर चर्चा करने के लिए बुलाया गया।
- कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच नामांकन अधिकार और वेटो शक्ति को लेकर विवाद इतना गहरा था कि कोई समझौता नहीं हो सका।
- Wavell ने अंततः इस प्रस्ताव और सम्मेलन को असमंजस की स्थिति में छोड़ दिया और इसे विफल घोषित कर दिया।
- इस विफलता को भारतीय इतिहास में एक watershed moment (संविधान संबंधी परिदृश्यों में निर्णायक मोड़) माना जाता है।
महत्व और निष्कर्ष
- वेवेल योजना, हालांकि सफल नहीं हो पाई, वह उस दौर की संवैधानिक राजनीति का एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
- इसने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत में सत्ता हस्तांतरण केवल ब्रिटिश प्रस्तावों से नहीं हो सकता — राजनीतिक पार्टियों के बीच निष्पक्ष संवाद और स्वीकारोक्ति ज़रूरी है।
- Wavell Plan की विफलता ने Partition के पक्ष में राजनीतिक ध्रुवीकरण को और बढ़ावा दिया।
- आज के पाठकों, छात्रों और इतिहास प्रेमियों के लिए यह समझना उपयोगी है कि कैसे उस युग की संवैधानिक चुनौतियाँ भारत के विभाजन और स्वतंत्रता मार्ग को प्रभावित करती थीं।
